हत्यारे कोचिंग माफियाओं ने ले ली एक अध्यापक की जान

हत्यारे कोचिंग माफियाओं ने ले ली एक अध्यापक की जान


 




चन्द्रभुषण मिश्र


 ■ प्रमोद मोरे ,डॉ. वैभव अवस्थी ,नरसिंग परमार उर्फ़ राम परमार और राहुल जैन हमारे भाई आशुतोष सिंह के हत्यारे हैं - किरण सिंह (मृतक की बहन )


■चार शिक्षामाफियाओं ने ले ली आशुतोष सिंह रघुवंशी की जान , इतना टॉर्चर किया कि आशुतोष सिंह आत्महत्या करने को हो गया मजबूर


■ अवैध शिक्षण संस्थानों द्वारा आम जनता से करोड़ों की लूट स्थानीय शासन प्रशासन कुम्भकरणी नींद में 


एक अध्यापक जो हजारों बच्चों को शिक्षा ही नही अपितु उन्हें जीवन जीने का एक उचित मार्ग देता भी है तैयार भी करता है  , हम चले नेक रास्ते पर हमसे भूल कर भी कोई भूल हो न.... इस ब्रह्म  वाक्य पर चलने वाला कोई इंसान जब अपनी स्वयं की जिंदगी की लड़ाई से हार जाय अंततः आत्महत्या करने को मजबूर हो जाय तो कलमकारों का कर्तव्य बनता है कि उसकी आत्महत्या का असल कारण सार्वजनिक करें जिससे भविष्य में कभी भी इस तरह की दुःखद घड़ी की पुनरावृत्ति न हो क्योंकि एक अध्यापक का असामयिक मृत्यु समाज के लिए अपूर्णीय क्षति है जिसके रिक्त स्थान की पूर्ति कभी नही की जा सकती । साधारणतया एक अध्यापन करने वाले में प्रस्तुति व दृढ़ इच्छाशक्ति 



मैं इस आत्महत्या के क्षणों को जब अपनी कलम से पकड़ने की कोशिश की तो मेरी  कलम के भी आँशु स्वमेव छलक गए फिर तो मेरी कलम ने इस घटना की पटकथा कुछ ऐसी लिखी की मानो मृतक आशुतोष सिंह रघुवंशी ने खुद ही कलम को अपना बयान दे रहे हों ।
मुझे अपनो ने मारा गैरों में कहाँ दम था , मेरी किश्ती वहाँ डूबी जंहा पानी बहुत कम था...
जी हां मैं आशुतोष सिंह रघुवंशी कुछ अपनी आपबीती आप लोगो  के सामने प्रस्तुत करना चाहता हूँ डर जाता हूँ रह रह कर उस दिन उस पल उस समय की घटना को याद करके ,जिस वक़्त मेरा मृत शरीर एक तरफ रेलवे पटरी पर क्षत विक्षत होकर वही लावारिसों की तरह पड़ा हुआ होगा , और मेरी आत्मा उसे एक टक निहार रही होगी और ये सोचती रही , ये संसार कितना भी नश्वर हो इस संसार में कितनी भी बुराईया क्यों न हो लेकिन मैं जीना चाहता था अपने सपनो को साकार करना चाहता था. एक लम्बा और सफल व्यक्ति की तरह इस रास्ते को तय करना चाहता था. क्या आप लोग ये जानना चाहते है की ऐसा क्या हुआ जो मुझे मेरे सारे सपनो को चकनाचूर करके मुझे मेरे जीवलीला समाप्त करनी पड़ी? 


मैं अपनी जिंदगी में बहुत खुश था. मैं पेशे से एक अध्यापक था , और मैं बच्चो को गणित विषय पढ़ाया करता था , मुझे पढ़ाने के साथ साथ में मुझे गाना गाना बहुत पसंद था , मैं अपने जिंदगी में अपने परिवार के साथ बहुत खुश था , मगर मेरी जिंदगी में एक पल वो आया जो मुझे नहीं मालूम था की ये पल मेरी जिंदगी में ग्रहण की तरह आएगा और मेरी पूरी जिंदगी को उलट पलट करके रख देगा और पूरा संसार मेरे लिए शून्य हो जाएगा , वो दिन था मेरा पीवीआर द साइंस हब में हिस्सेदार बनना. पीवीआर  द साइंस हब में हिस्सेदार बनने के पिछे मेरा एक बहुत बड़ा मकसद था मेरा एक सपना था जो मुझे साकार होता हुआ दिख रहा था , लेकिन वो मेरा सपना  मेरे लिए नहीं मेरे विद्यार्थियों के लिए था , जिसकी चाह लिए में कई वर्षो से निरंतर इस पेशे में लगा रहा , और मेरी चाह ये थी की गरीब विद्यार्थी जो शिक्षा क्षेत्र में मेधावी तो बहुत होते है . मगर कुछ अपनी घरेलू आर्थिक स्थिति की वजह से उनकी कुशलता बेकार हो जाती है एवम उनके अरमानों पर ग्रहण सा लग जाता है । मुझे ऐसे विद्यार्थियों को मुफ्त में शिक्षा और उनके उच्च शिक्षा के लिए मुझे कुछ करने की लालसा थी. मैं अपने हैसियत के हिसाब से कई बच्चो की सहायता की लेकिन मुझे ये सहायता और बड़े पैमाने पर करना था जिसका लाभ ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थी उठा सके और मैं अपने क्षेत्र का नाम अच्छा बना पाउ ये मेरी लालसा थी . मगर अफ़सोस मेरा ये सपना पूरा ना हो सका और चकनाचूर हो गया मगर मेरे इस सपने को चकनाचूर करने में सबसे बडा हाथ मेरे अपने ही एक खास दोस्त का था , जिसे मैं अपना सबसे अच्छा दोस्त और हितैषी मानता था वह तो आस्तीन का सांप निकला मेरे इस दोस्त ने ही मेरी पीठ पर दोस्त बन छुरा खोप दिया उस दोस्त का नाम प्रमोद मोरे था. मैं जिस रास्ते पर चला था अपने सपने को साकार करने उस सपने को साकार करने के लिए मेरे जैसी  ही  सोच मेरे दोस्तों की होगी मगर मेरी ये सोच गलत निकली. मेरे सभी दोस्त जो मेरे साथ पीवीआर  द साइंस में हिस्सेदार थे१) प्रमोद मोरे २) डॉ. वैभव अवस्थी ३) नरसिंग परमार उर्फ़ राम परमार ४) राहुल जैन  वो सभी के सभी पैसो के भूखे और मेरे खून के प्यासे थे.  मैं इन चारो की रणनीति में ऐसा फँसा की मैं निकल ही नहीं पाया. लोग तो मरने के बाद यमराज देखते है , मगर मैंने जीते जी इन चारो में यमराज को देख लिया था।


प्रमोद मोरे, डॉ. वैभव अवस्थी, नरसिंग परमार उर्फ़ राम परमार एवम राहुल जैन आशुतोष सिंह रघुवंशी को अपने विकास में बाधक बनने नही देना चाहते थे शायद इसलिए इतना टॉर्चर करना शुरू कर दिया कि ताकि आशुतोष कोचिंग छोड़कर भाग जाय और हमे इसका हिस्सा इसे न देना पड़े । इन्होंनेटॉर्चर इस कदर कर दिया कि आशुतोष सिंह रघुवंशी ने बहुत जल्दी ही हार मान ली और वसई रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन से कटकर अपनी जीवनलीला की पटकथा पर अंतिम मुहर लगा दी । आत्महत्या के पूर्णरूपेण जिम्मेदार इन चारों साथियों ने माननीय वसई न्यायालय को भी गुमराह कर अटक पूर्व जामिन प्राप्त कर ली इन्होंने न्यायालय को बताया कि हम चारों आशुतोष सिंह रघुवंशी को विगत दस वर्षों से जानते हैं जबकि यह सच नही है , सच तो यह है कि ये चारों शिक्षा माफिया विगत एक वर्ष से परिचित हैं इनकी कोई पुरानी जान पहचान नही है । इस मामले में मृतक आशुतोष सिंह रघुवंशी को न्याय कब मिलेगा यह तो हम नही कह सकते किंतु न्यायालय अध्यापक की दर्दनाक मृत्यु पर त्वरित न्याय करे इस दिशा में सच्ची व निष्पक्ष खबरें हमारा मैट्रो टीम पीड़ित पक्ष के परिजनों के माध्यम से प्राप्त जानकारी लेकर आम जन मानस तक पहुचाने का प्रयास करेगा ताकि भविष्य में किसी अध्यापक के साथ कोई दरिंदा ऐसी दरिंदगी करने से पहले सौ बार सोचें ।