" अक्सर लोग लेखकों से पूछते है कि वे लिखते कैसे?"
आलोचना : बसन्त आई तब गीत गाए, अब जाड़ा आए किस्से सुनाओं!

       " अक्सर लोग लेखकों से पूछते है कि वे लिखते कैसे?"

 

समझदारों ने कहा है कि 'मुर्ख' चीख से हैरान करता है और 'बुध्दिमान' जंयती हुई कहावत से। अक्सर लोग लेखकों से पूछते है कि वे लिखते कैसे हैं? उनके दिमाग में नई-नई चीजें कहां से कैसे आती हैं? अब कोई बताए... कि इसका उत्तर क्या हैं। क्या कोई अकादमी या लेखक संघ साहित्यकार बना सकता है? एक साहित्य संस्थान ने अपने यहां लेखक बनाने का बीड़ा उठाया। पहले साल तक उस संस्थान में बीस कवि, चार गद्यकार, और एक नाटककार थे। दूसरे साल पन्द्रह कवि, आठ गद्यकार और एक नाटककार और एक आलोचक। तीसरे साल आठ कवि, दस गद्यकार, एक नाटककार और छह आलोचक थे। और पांचवे साल एक कवि, एक गद्यकार, और एक नाटककार रह गया, बाकी तेइस आलोचक बन गए। यानी किसी के सृजन पर आलोचना करना बड़ा आसान होता हैं। क्योंकि नया रचने में भेजा  (दिमाग ) लड़ाना पड़ता है। लिखे पर टिप्पणी करना सरल है। मकान का नक्शा बनाने और मकान बनाने में फर्क है। हजारो लोगों नें हवा में तैरते हुए जहाज का नक्शा कागजों पर बना दिया, लेकिन उनके बनाए जहाज हवा में नहीं उड़ सके। हजारों लोग अपनी लिखी कविताओं पर इतराते हैं, लेकिन उनकी लिखी पांच-पांच कविता संग्रहों की एक भी कविता उस अनजान मां की लोरी के सामने नहीं टिकती, जिसने अपने नवजात शिशु को सुलाने के लिए लोरी बनाई थी। वह लोरी किसने बनाई, यह आज तक किसी को पता नहीं, लेकिन लाखों माताएं उस लोरी को गा-गाकर आज भी अपने बच्चे को सुलाती हैं। इस दुनिया में ऐसे मूर्ख दानिशों की भी कमी नहीं जो गैर पढ़े-लिखे टिप्पणी कर देते हैं। क्या कभी एक हाथ से दो तरबूज उठाए जा सकते हैं? कुछ लोग ऐसा ही करते हैं, लेकिन कभी-कभी कोई मूर्तिकार ऐसी मूर्ति बना देता हैं, जिसमे एक तरूण और तरुणी ऐसे आलिंगनबध्द हुए बैठे रहते हैं कि उन्हे एक दूजे से अलग देखना मुश्किल हो जाता है। कुछ लोग जितनी अच्छी कविता लिखते हैं, उतनी ही अच्छी कहानी भी लिख देते हैं, लेकिन कुछ लोग अपने गद्य को ही तोड़-तोड़ कर लिख देते हैं और उसे कविता कह देते हैं। गांव की लड़कियां सुन्दर दिखने के लिए अपनी ठोडी पर काले तिल लगा लेती हैं और उन्हे देखकर शायर कह उठता हैं कि- 'अब मैं समझा तेरे रुखसार पर तिल का मतलब, दौलतें हुस्न पर दरबान बिठा रखा हैं।' और जिनके चेहरे पर तिल नहीं होता, उनके लिए भी शायर कहता हैं - 'उनके रूख पर तिल जो नहीं हैं, ये कोई काबिले गौर नहीं है, हुस्न ऐसा जमा है जमघट, तिल धरने को ठोर नहीं हैं ।'

कभी-कभी श्रीमती जी चावल, आलू, प्याज, नमक, मिर्च, टमाटर, दाल एक साथ डालकर पतीली में चढ़ा देती हैं और ऐसी लाजवाब खिचड़ी बनती है कि पूछो मत और कई बार अलग-अलग सजे खाने इतने बेस्वाद होते हैं कि खाते नहीं बनता। इसलिए समझदार कहते हैं कि - " वसन्त आया - अब गीत गाओ और जाड़ा आया - अब किस्से सुनाओं।

 

 


 

- ✍🏻 सूबेदार रावत गर्ग उण्डू 

(सहायक उपानिरीक्षक - रक्षा सेवाऐं भारतीय थल सेना, स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी )

 

निवास - " श्री हरि विष्णु कृपा भवन "

ग्राम - श्री गर्गवास राजबेरा, 

तहसील उपखंड - शिव, 

जिला - बाड़मेर,

पिन कोड - 344701, राजस्थान ।